1. सही दिश
एक पहलवान जैसा, हट्टा-कट्टा, लंबा-चौड़ा व्यक्ति सामान लेकर किसी स्टेशन पर उतरा। उसनेँ एक टैक्सी वाले से कहा कि मुझे साईँ बाबा के मंदिर जाना है। टैक्सी वाले नेँ कहा- 200 रुपये लगेँगे।
उस पहलवान आदमी नेँ बुद्दिमानी दिखाते हुए कहा- इतने पास के दो सौ रुपये, आप टैक्सी वाले तो लूट रहे हो।
मैँ अपना सामान खुद ही उठा कर चला जाऊँगा। वह व्यक्ति काफी दूर तक सामान लेकर चलता रहा।
कुछ देर बाद पुन: उसे वही टैक्सी वाला दिखा, अब उस आदमी ने फिर टैक्सी वाले से पूछा – भैया अब तो मैने आधा से ज्यादा दुरी तर कर ली है तो अब आप कितना रुपये लेँगे? टैक्सी वाले नेँ जवाब दिया- 400 रुपये।
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उस आदमी नेँ फिर कहा- पहले दो सौ रुपये, अब चार सौ रुपये, ऐसा क्योँ। टैक्सी वाले नेँ जवाब दिया- महोदय, इतनी देर से आप साईँ मंदिर की विपरीत दिशा मेँ दौड़ लगा रहे हैँ जबकि साईँ मँदिर तो दुसरी तरफ है।
उस पहलवान व्यक्ति नेँ कुछ भी नहीँ कहा और चुपचाप टैक्सी मेँ बैठ गया। इसी तरह जिँदगी के कई मुकाम मेँ हम किसी चीज को बिना गंभीरता से सोचे सीधे काम शुरु कर देते हैँ, और फिर अपनी मेहनत और समय को बर्बाद कर
उस काम को आधा ही करके छोड़ देते हैँ। किसी भी काम को हाथ मेँ लेनेँ से पहले पुरी तरह सोच विचार लेवेँ कि क्या जो आप कर रहे हैँ वो आपके लक्ष्य का हिस्सा है कि नहीँ। हमेशा एक बात याद रखेँ कि दिशा सही होनेँ पर ही मेहनत
पूरा रंग लाती है और यदि दिशा ही गलत हो तो आप कितनी भी मेहनत का कोई लाभ नहीं मिल पायेगा। इसीलिए दिशा तय करेँ और आगे बढ़ेँ कामयाबी आपके हाथ जरुर थामेगी।
2. स्वास्थ्य ही सबसे बड़ी पूंजी है
एक बार की बात है एक गॉव में एक धनी व्यक्ति रहता था। उसके पास पैसे की कोई कमी नहीं थी लेकिन वह बहुत ज़्यादा आलसी था। अपने सारे काम नौकरों से ही करता था और खुद सारे दिन सोता रहता या अययाशी करता था।
वह धीरे धीरे बिल्कुल निकम्मा हो गया था| उसे ऐसा लगता जैसे मैं सबका स्वामी हूँ क्यूंकी मेरे पास बहुत धन है मैं तो कुछ भी खरीद सकता हूँ। यही सोचकर वह दिन रात सोता रहता था| लेकिन कहा जाता है की बुरी सोच का बुरा नतीज़ा होता है।
बस यही उस व्यक्ति के साथ हुआ। कुछ सालों उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे उसका शरीर पहले से शिथिल होता जा रहा है उसे हाथ पैर हिलाने में भी तकलीफ़ होने लगी यह देखकर वह व्यक्ति बहुत परेशान हुआ।
उसके पास बहुत पैसा था उसने शहर से बड़े बड़े डॉक्टर को बुलाया और खूब पैसा खर्च किया लेकिन उसका शरीर ठीक नहीं हो पाया। वह बहुत दुखी रहने लगा| एक बार उस गॉव से एक साधु गुजर रहे थे उन्होने उस व्यक्ति की बीमारी के बारे मे सुना।
सो उन्होनें सेठ के नौकर से कहा कि वह उसकी बीमारी का इलाज़ कर सकते हैं। यह सुनकर नौकर सेठ के पास गया और साधु के बारे में सब कुछ बताया। अब सेठ ने तुरंत साधु को अपने यहाँ बुलवाया लेकिन साधु ने कहा क़ि वह सेठ के पास नहीं आएँगे अगर सेठ को ठीक होना है तो वह स्वयं यहाँ चलकर आए।
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सेठ बहुत परेशान हो गया क्यूंकी वो असहाय था और चल फिर नहीं पता था। लेकिन जब साधु आने को तैयार नहीं हुए तो हिम्मत करके बड़ी मुश्किल से साधु से मिलने पहुचें| पर साधु वहाँ थे ही नहीं। सेठ दुखी मन से वापिस आ गया अब तो
रोजाना का यही नियम हो गया साधु रोज उसे बुलाते लेकिन जब सेठ आता तो कोई मिलता ही नहीं था। ऐसे करते करते 3 महीने गुजर गये। अब सेठ को लगने लगा जैसे वह ठीक होता जा रहा है उसके हाथ पैर धीरे धीरे कम करने लगे हैं।
अब सेठ की समझ में सारी बात आ गयी की साधु रोज उससे क्यूँ नहीं मिलते थे। लगातार 3 महीने चलने से उसका शरीर काफ़ी ठीक हो गया था। तब साधु ने सेठ को बताया की बेटा जीवन में कितना भी धन कमा लो लेकिन स्वस्थ शरीर से बड़ा
कोई धन नहीं होता| तो मित्रों, यही बात हमारे दैनिक जीवन पर भी लागू होती है पैसा कितना भी कमा लो लेकिन स्वस्थ शरीर से बढ़कर कोई पूंजी नहीं होती।
3. असफलता सफलता से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है
सभी के जीवन में एक समय ऐसा आता है जब सभी चीज़ें आपके विरोध में हो रहीं हों। चाहें आप एक प्रोग्रामर हैं या कुछ और, आप जीवन के उस मोड़ पर खड़े होता हैं जहाँ सब कुछ ग़लत हो रहा होता है।
अब चाहे ये कोई सॉफ्टवेर हो सकता है जिसे सभी ने रिजेक्ट कर दिया हो, या आपका कोई फ़ैसला हो सकता है जो बहुत ही भयानक साबित हुआ हो | लेकिन सही मायने में, विफलता सफलता से ज़्यादा महत्वपूर्ण होती है
हमारे इतिहास में जितने भी बिजनिसमेन, साइंटिस्ट और महापुरुष हुए हैं वो जीवन में सफल बनने से पहले लगातार कई बार फेल हुए हैं। जब हम बहुत सारे कम कर रहे हों तो ये ज़रूरी नहीं कि सब कुछ सही ही होगा।
लेकिन अगर आप इस वजह से प्रयास करना छोड़ देंगे तो कभी सफल नहीं हो सकते | हेनरी फ़ोर्ड, जो बिलियनेर और विश्वप्रसिद्ध फ़ोर्ड मोटर कंपनी के मलिक हैं | सफल बनने से पहले फ़ोर्ड पाँच अन्य बिज़निस मे फेल हुए थे।
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कोई और होता तो पाँच बार अलग अलग बिज़निस में फेल होने और कर्ज़ मे डूबने के कारण टूट जाता| लेकिन फ़ोर्ड ने ऐसा नहीं किया और आज एक बिलिनेअर कंपनी के मलिक हैं।
अगर विफलता की बात करें तो थॉमस अल्वा एडिसन का नाम सबसे पहले आता है| लाइट बल्व बनाने से पहले उसने लगभग 1000 विफल प्रयोग किए थे।अल्बेर्ट आइनस्टाइन जो 4 साल की उम्र तक कुछ बोल नहीं पता था और 7 साल की उम्र तक निरक्षर था।
लोग उसको दिमागी रूप से कमजोर मानते थे लेकिन अपनी थ्ओरी और सिद्धांतों के बल पर वो दुनिया का सबसे बड़ा साइंटिस्ट बना। अब ज़रा सोचो की अगर हेनरी फ़ोर्ड पाँच बिज़नेस में फेल होने के बाद निराश होकर बैठ जाता
या एडिसन 999 असफल प्रयोग के बाद उम्मीद छोड़ देता और आईन्टाइन भी खुद को दिमागी कमजोर मान के बैठ जाता तो क्या होता? हम बहुत सारी महान प्रतिभाओं और अविष्कारों से अंजान रह जाते | तो मित्रों, असफलता सफलता से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है।
4. बदलाव
जिन्दगी में बहुत सारे अवसर ऐसे आते है जब हम बुरे हालात का सामना कर रहे होते है और सोचते है कि क्या किया जा सकता है क्योंकि इतनी जल्दी तो सब कुछ बदलना संभव नहीं है और क्या पता मेरा ये छोटा सा बदलाव कुछ क्रांति
लेकर आएगा या नहीं लेकिन मैं आपको बता दूँ हर चीज़ या बदलाव की शुरुआत बहुत ही basic ढंग से होती है। कई बार तो सफलता हमसे बस थोड़े ही कदम दूर होती है कि हम हार मान लेते है जबकि अपनी क्षमताओं पर भरोसा रख कर
किया जाने वाला कोई भी बदलाव छोटा नहीं होता और वो हमारी जिन्दगी में एक नीव का पत्थर भी साबित हो सकता है। चलिए एक कहानी पढ़ते है इसके द्वारा समझने में आसानी होगी कि छोटा बदलाव किस कदर महत्वपूर्ण है।
एक लड़का सुबह सुबह दौड़ने को जाया करता था। आते जाते वो एक बूढी महिला को देखता था। वो बूढी महिला तालाब के किनारे छोटे छोटे कछुवों की पीठ को साफ़ किया करती थी। एक दिन उसने इसके पीछे का कारण जानने की सोची।
वो लड़का महिला के पास गया और उनका अभिवादन कर बोला ” नमस्ते आंटी ! मैं आपको हमेशा इन कछुवों की पीठ को साफ़ करते हुए देखता हूँ आप ऐसा किस वजह से करते हो ?” महिला ने उस मासूम से लड़के को देखा
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और इस पर लड़के को जवाब दिया मैं हर रविवार यंहा आती हूँ और इन छोटे छोटे कछुवों की पीठ साफ़ करते हुए सुख शांति का अनुभव लेती हूँ। क्योंकि इनकी पीठ पर जो कवच होता है उस पर कचता जमा हो जाने की वजह
से इनकी गर्मी पैदा करने की क्षमता कम हो जाती है इसलिए ये कछुवे तैरने में मुश्किल का सामना करते है। कुछ समय बाद तक अगर ऐसा ही रहे तो ये कवच भी कमजोर हो जाते है इसलिए कवच को साफ़ करती हूँ।
यह सुनकर लड़का बड़ा हैरान था। उसने फिर एक जाना पहचाना सा सवाल किया और बोला “बेशक आप बहुत अच्छा काम कर रहे है लेकिन फिर भी आंटी एक बात सोचिये कि इन जैसे कितने कछुवे है जो इनसे भी बुरी हालत में है।
जबकि आप सभी के लिए ये नहीं कर सकते तो उनका क्या क्योंकि आपके अकेले के बदलने से तो कोई बड़ा बदलाव नहीं आयेगा न महिला ने बड़ा ही संक्षिप्त लेकिन असरदार जवाब दिया कि भले ही मेरे इस कर्म से दुनिया में कोई
बड़ा बदलाव नहीं आयेगा लेकिन सोचो इस एक कछुवे की जिन्दगी में तो बदल्वाव आयेगा ही न। तो क्यों हम छोटे बदलाव से ही शुरुआत करें।
5. एक अनोखा मालिक
जाकिर हुसैन के घर पर एक अधेड़ उम्र का नौकर था। वह रोज देर से सोकर उठता था। उसकी इस आदत से घर वाले उससे परेशान थे। उन्होंने उस नौकर की शिकायत जाकिर हुसैन साहब से कर दी और उसे निकाल बाहर करने को कहा।
इसके जवाब में जाकिर साहब ने केवल यही कहा-‘उसे समझाओ।’ सबने उसे समझाया, पर इसके बावजूद उस पर कोई असर न हुआ। ‘अब आप ही समझाकर देखिए उस नौकर को!’ घरवालों ने जाकिर साहब से निवेदन किया।
अगले दिन सवेरे जाकिर साहब उठे। एक लोटा पानी भरकर उस नौकर के सिर के पास जाकर खड़े हो गए। नौकर अभी तक गहरी नींद में ही था। वे उसे धीरे से उठाते हुए बोले-‘उठिए मालिक! जागिए! सवेरा हो गया। मुंह हाथ धो लीजिए।
मैं अभी आपके लिए चाय और स्नान के पानी का इंतजाम करता हूं।’ इतना कहकर वे चले गए। इधर नौकर परेशान कि ये हो क्या रहा है, कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूं। वह अभी बैठा-बैठा यह सोच ही रहा था, तभी जाकिर साहब चाय लेकर आते दिखाई दिए।
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वे आकर बोले-‘मालिक, लीजिए चाय पीकर स्नान करने चलिए।’ नौकर बहुत घबराया। क्षमा मांगते हुए बोला-‘हुजूर! आज के बाद से मेरे देर तक सोकर उठने की शिकायत किसी को नहीं होगी।’ इस पर जाकिर साहब मुस्करा दिए।
अगले दिन सभी घरवालों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा कि वह नौकर सबसे पहले उठकर घर का सारा काम कर रहा था। नौकर डॉक्टर जाकिर हुसैन की विनयशीलता से अभिभूत हो गया। जाकिर साहब ने अपने घर के लोगों को
समझाया- व्यक्ति के आचरण में निहित विनम्रता का कमाल यही है कि वह सामने वाले व्यक्ति पर बेहद सरलता के साथ अपना प्रभाव डाल देता है। समाज में अपने व्यवहार द्वारा प्रभाव पैदा करना है तो जीवन में विनम्रता को स्थान दें।
6. कोयला और चंदन
हकीम लुकमान का पूरा जीवन जरूरतमंदों की सहायता के लिए समर्पित हुआ था। जब उनका अंतिम समय नजदीक आया तो उन्होंने अपने बेटे को पास बुलाया। बेटा पास आ गया तो उन्होंने उससे कहा, ‘देखो बेटा,
मैंने अपना सारा जीवन दुनिया को शिक्षा देने में गुजार दिया। अब अपने अंतिम समय में मैं तुम्हें कुछ जरूरी बातें बताना चाहता हूं। लेकिन इससे पहले जरा तुम एक कोयला और चंदन का एक टुकड़ा उठा कर ले लाओ।
बेटे को पहले तो यह बड़ा अटपटा लगा, लेकिन उसने सोचा कि अब पिता का हुक्म है तो यह सब लाना ही होगा। उसने रसोई घर से कोयले का एक टुकड़ा उठाया। संयोग से घर में चंदन की एक छोटी लकड़ी भी मिल गई।
वह दोनों को लेकर अपने पिता के पास पहुंच गया। उसे आया देख लुकमान बोले, ‘बेटा, अब इन दोनों चीजों को नीचे फेंक दो।’ बेटे ने दोनों चीजें नीचे फेंक दीं और हाथ धोने जाने लगा तो लुकमान बोले, ‘जरा ठहरो बेटा।
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मुझे अपने हाथ तो दिखाओ।’ बेटे ने हाथ दिखाए तो वह उसका कोयले वाला हाथ पकड़ कर बोले, ‘देखा तुमने। कोयला पकड़ते ही हाथ काला हो गया। लेकिन उसे फेंक देने के बाद भी तुम्हारे हाथ में कालिख लगी रह गई।
गलत लोगों की संगति ऐसी ही होती है। उनके साथ रहने पर भी दुख होता है और उनके न रहने पर भी जीवन भर के लिए बदनामी साथ लग जाती है। दूसरी ओर सज्जनों का संग इस चंदन की लड़की की तरह है जो साथ रहते हैं
तो दुनिया भर का ज्ञान मिलता है और उनका साथ छूटने पर भी उनके विचारों की महक जीवन भर बनी रहती है। इसलिए हमेशा अच्छे लोगों की संगति में ही रहना।
7. सम्मान का कारण
एक बार राजपुरोहित देवदत्त ने सोचा, राजा ब्रहमदत्त मेरा बहुत सम्मान करते हैं। यह सम्मान मेरे ज्ञान का है या सदाचार का? इसकी पहचान करनी चाहिए। एक दिन राजसभा से लौटते हुए देवदत्त कोषागार के पास से निकल रहा था।
उसने चुपचाप एक सिक्का उठाकर अपने पास रख लिया। कोषाध्यक्ष यह देखकर हैरान हुआ। वह सोचने लगा, देवमित्र जैसे महान व्यक्ति ने सिक्का क्यों उठाया होगा, और उठाया है तो अवश्य कोई प्रयोजन होगा।
आज हो सकता है जल्दी के कारण कुछ नहीं बताया, बाद में बता देगा। दूसरे दिन भी देवदत्त ने यही किया। कोषाध्यक्ष आज भी धैर्य बनाए रहा। तीसरे दिन भी देवदत्त ने मुट्ठी भरकर स्वर्ण मुद्राएं उठा लीं। अब कोषाध्यक्ष से नहीं रहा गया।
उसे दाल में कुछ काला नजर आया। उसने तत्काल सिपाहियों को बुलाकर देवदत्त को गिरफ्तार कर लिया। दूसरे दिन उसे राजा के समक्ष पेश किया गया। सभी चकित थे कि इतना बड़ा विद्वान और ऐसी चोरी!
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राजा ने देवदत्त से कहा- ‘आपने बहुत बड़ा अपराध किया है। साथ ही हमारी श्रद्धा को चोट पंहुचाई है।’ उसने सजा के तौर पर चार उंगलियां काटने का फरमान भी सुना डाला। फैसला सुनने के बाद देवदत्त मुस्कराकर बोला, मैंने धनवान बनने की इच्छा से चोरी नहीं की थी।
मैं तो यह जानना चाहता था कि आप मेरा सम्मान ज्ञान के कारण करते हैं या सदाचार के कारण? मैंने परीक्षा ली है। मेरा ज्ञान तो जितना कल था उतना आज भी है। दो दिन में फर्क सिर्फ इतना आया है कि मेरा सदाचार खंडित हुआ है।
इसके कारण मुझे सजा मिली है।’ राजा को पूरा माजरा समझ में आ गया। उन्होंने देवदत्त को सम्मान सहित आजाद कर दिया।
sir ji aapki ye storis padkar
bahut aachi lagi ase
storys likh kar
hume motivate karte
rahia
thanks……….