सकारात्मक नजरिए वाले लोगों को कैसे पहचानें ?
जिस तरह सेहत खराब न होने का मतलब अच्छी सेहत नहीं होता, उसी तरह किसी इंसान के नकारात्मक (negative) न होने का मतलब यह नहीं होता कि वह सकारात्मक (positive) है ।
सकारात्मक नज़रिए वाले लोगों की शख्सियत ( personality ) में कुछ ऐसी खासियतें होती हैं, जिनकी वजह से उन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है ।
ऐसे लोग दूसरों का ख्याल रखने वाले, आत्मविश्वास से भरे, धीरज वाले और विनम्र होते हैं । ये लोग खुद से और दूसरों से काफी ऊँची उम्मीदें रखते हैं, उन्हें अच्छे नतीजे हासिल होने की आशा रहती है ।
सकारात्मक नज़रिए वाला आदमी हर मौसम में फलने वाले ( बारहमासी फल ) जैसा होता है । उसका हमेशा स्वागत किया जाता है ।
सकारात्मक नज़रिए के फ़ायदे
सकारात्मक नज़रिए के कई फायदे होते हैं । इन्हें आसानी से देखा जा सकता है । लेकिन आसानी से दिखाई देनी वाली चीज़ को उतनी ही आसानी से अनदेखी भी कर दिया जाता है ।
सकारात्मक नज़रिया
आपके लिए फायदेमंद –
- शख्सियत खुशनुमा हो जाती है।
- जोश पैदा होता है।
- जिंदगी का आनंद बढ़ जाता है।
- आपके अगल – बगल के लोगों को प्रेरणा मिलती है।
- आप समाज में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले सदस्य, और राष्ट्र की संपत्ति बन जाते हैं ।
संस्थाओं के लिए –
- उत्पादकता बढ़ जाती है।
- टीमभावना बढती है।
- समस्याएँ हल हो जाती हैं।
- गुणवत्ता ( quality ) बढ़ जाती है माहौल आपके मुताबिक बनता है।
- वफ़ादारी बढ़ती है।
- लाभ ज़्यादा मिलता है।
- मालिक, कर्मचारी और ग्राहक के बीच बेहतर संबंध बनते हैं।
- तनाव कम होता है ।
नकारात्मक नजरिए के नतीजे
जिंदगी की राह रुकावटों से भरी पड़ी है,
और अगर हमारा नज़रिया नकारात्मक हो, तो अपने लिए सबसे बडी रुकावट हम खुद बन जाते हैं । नकारात्मक नजरिए । वाले लोगों के लिए दोस्ती, नौकरी, शादी और संबंधों को कायम रख पाना काफ़ी मुश्किल होता है । नकारात्मक नजरिए की वजह से –
- संबंधों में कड़वाहट बढ़ती है।
- लोग नाराज़ रहते हैं।
- जिंदगी बेमकसद हो जाती है।
- सेहत खराब रहती है।
- खुद के लिए, और दूसरों के लिए तनाव बढाता है ।
नकारात्मक नज़रिए की वजह से घर और कामकाज की जगह का माहौल बिगड़ जाता है । ऐसा आदमी समाज के लिए बोझ बन जाता है । ये लोग अपने नकारात्मक नज़रिए को छुआछूत रोग की तरह अपने आसपास के लोगों और आने वाली पीढ़ियों तक फैला देते हैं ।
अपने नकारात्मक नज़रिए से वाकिफ़ होने के बावजूद हम उसे बदलते क्यों नहीं हैं ?
इंसान का स्वभाव आम तौर पर बदलाव – विरोधी होता है । हमें बदलाव तकलीफदेह लगता है । बदलाव का नतीजा अच्छा हो, या बूरा, पर अकसर इससे तनाव बढ़ता है ।
कई बार हम अपनी बुराईयों ( negativity ) के साथ जीने में इतना आराम महसूस करते हैं कि बेहतरी के लिए होने वाले बदलावों को भी कबूल नहीं करना चाहते । हम बुरे ही बने रहना चाहते हैं ।
चार्ल्स डिकेंस ( Charles Dickens ) ने एक ऐसे कैदी के बारे में लिखा है, जो सालों तक एक काल कोठरी में कैद रहा । सज़ा काट लेने के बाद उसे आज़ाद कर दिया गया ।
उसे काल कोठरी से बाहर खुली धूप में लाया गया । उस आदमी ने अपने चारों ओर देखा । कुछ देर में ही वह अपनी इस नई आज़ादी से परेशान हो गया ।
उसने वापस काल कोठरी में जाने की इच्छा जाहिर की । वह आज़ादी और खुली दुनिया के बदलावों को क़बूल करने के बजाए काल कोठरी, अंधेरे और हथकड़ियों में ही सुरक्षा और आराम महसूस कर रहा था।
क्योंकि वह उन्हीं का आदी हो चुका था । इन दिनों भी कई कैदी ऐसा ही व्यवहार करते हैं । एक अंजाने संसार के साथ तालमेल कायम करने का तनाव उनकी बर्दाश्त से बाहर होता है।
इसलिए वे जानबूझ कर और अपराध करते हैं, ताकि उन्हें वापस जेल में भेज दिया जाए । वहाँ उनकी आजादी पर भले ही पाबंदी रहती हो, लेकिन उन्हें अपने बारे में कम फैसले लेने पड़ते हैं ।
अगर हमारा नज़रिया नकारात्मक है, तो हमारी जिंदगी सीमाओं में कैद है । ऐसे नज़रिए की वजह से हमको अपने काम में सीमित क़ामयाबी ही मिल सकेगी ।
हमारे दोस्तों की तादाद कम होगी, और हम जिंदगी का कम आनंद उठा पाएँगे । अगले अध्याय ( Chapter ) में मैं सकारात्मक नज़रिया विकसित करने के तरीकों के बारे में चर्चा करूँगा ।
हो सकता है कि सकारात्मक नज़रिया विकसित करने के लिए हमको थोड़ा तनाव झेलना पड़े, और बदलाव की वजह से अनिश्चितता सी महसूस हो, पर यक़ीनन, हमें इसका लाभ मिलेगा ।
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